मानवता

भारतीय संस्कृति मानव धर्म के सृजन,विकास और नरपशु को मनुष्य बनाने का अन्यतम अनुष्ठान है । मनुष्योचित व्यवहार की अपेक्षा मानव सभ्यता का निकर्ष है । पूर्ण विकसित मनुष्य जब मानव होने का गौरव प्राप्त कर लेता है तभी वह सम्पूर्ण जीवधारियों में श्रेष्ठ कहलाता है । नर पशु से मनुष्य, और मनुष्य से मानव बनने की यात्रा अत्यन्त कष्टसाध्य है जो संकल्प और साधन साध्य है । यह यात्रा फलवती होती है " मानवता " के रूप में । युगपुरुष और मनीषी आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने सत्य ही कहा है कि मनुष्य का जन्म तो सहज है परंतु मनुष्यता उसे कठिन प्रयत्न से प्राप्त होती है । वास्तव में मनुष्यता का ही दूसरा नाम मानवता है । मानवता ही मनुष्य का अभीष्ट है , मानवता ही मनुष्य का भूषण है । भारत के प्राचीन ऋषियो ने इस तथ्य का साक्षात्कार कर नरको मनुष्य बनाने की विधा विकसित की अर्थात साधन मार्ग प्रशस्त किया । ...