मंगलाचरण
मङ्गलाचरण
शंकर सुवन,नन्दन हैं जो केसरी के
लाल अंजनी के पवन तनय कहाये है ।
बल के निधान यातुधान के विनाशक
वो रामभक्त हनुमान ब्रह्म वृत्त धारे है ।
दुष्टो के दलन और रामकाज करने हेतु
ततपर सदैव राम नाम के सहारे हैं ।
आर्त भक्तजनो को जो देते है अभयदान
मेरे मन मानस में नित्य ही विराजे है ।
मंगल को जन्मे ,करे मंगल सदा ही वह
सिद्धि और निधि के प्रदाता अधिकारी है ।
ज्ञानी, वरदानी है ,दास सीतारामजी के
परम प्रतापी दीनबन्धु उपकारी है ।
ताप त्रय तप्त जन पाते जिनसे है त्राण
भव पार करते, ऐसे रुद्रावतारी है ।
करुण कृपा से जिनकी होता है मुदितमन
लेखनी पे राजें यह कामना हमारी है ।
त्वमेव इष्टः च पुष्टः त्वमेव
त्वमेव विद्या च ज्ञानं त्वमेव ।
त्वमेव शक्तिः च भक्तिः त्वमेव
गुरुर्त्वमेवमं मम् देव देव ।
भवतु शिवं पदविन्यास एतद्
तव प्रेरणायाः क्रियतेमया इदम् ।
उदारमूर्तिम मनसा स्मरेण्
प्रणमामि नित्यं तव पूज्यपादम् ।
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