प्राक्कथन

             प्राक्कथन
     जीवन में काल प्रवाह के साथ अनेक ऐसे विचार , जो प्रबुद्ध जनो के लिये के लिए सन्देह, अनिश्चय,और नवीन जिज्ञासा को जन्म देते है,स्वाभाविक रूप से चिंतन के विषय बन जाते है । चिंतन के अभाव में यथार्थ बोध नही होता, परिणामतः व्यवहार में वस्तुतः सार्थकता नही आ पाती । विचार ही जीवन को दिशा देते है ,विचार ही जीवन को परिमार्जित कर उसे उत्कृष्टता की ओर अग्रसर करते है । अतः जीवन लक्ष्य की उपलब्धि हेतु शास्त्र वचनो, विद्वानो और महापुरुषों की वाणी का यथार्थ अनुशीलन महत्वपूर्ण और आवश्यक है ।सामान्य जन शब्दार्थ प्रचलित मान्यता के अनुसार ही करते है और तदनुसार ही व्यवहार में प्रवृत्त होते है । शब्दार्थ वास्तव में विषय सन्दर्भ और देश-काल के साथ साथ  व्यंजना, लक्षणा और व्याकरण गत अपेक्षित कारको के साथ ही होने पर यथार्थता प्राप्त करता है । अनुभव के आधार पर प्रायः व्यवहार में आने वाले ऐसे विषयों से ,जो सूक्ष्म विभेद के कारण जन सामान्य को यथार्थ से जोड़ने में विफल रहते है ,को इस पुस्तक में व्याख्यायित करने का प्रयास किया गया है ।
         जीवन और जगत के रहस्यों को उद्घाटित करने वाले दार्शनिक विषयों, सामाजिक समरसता उतपन्न करने वाले और ऐक्य भाव की सृष्टि करने वाले विषयो में प्रवेश करने पर हुये आत्मानुभव के आधार पर व्यवहार और परमार्थ सर्वत्र दूध और पानी की भाँति एक साथ मिले रहने पर विवेक बुद्धि से ही उन्हें पृथक कर यथार्थ बोध सम्भव हो पाता है  । इस दुर्बोधता को लक्ष्य करके  विषयो की व्याख्या की गयी है । विषय को सरलता से पुष्टि और तुष्टि के साथ समझने के लिये ,लोक में सम्मानित और पूज्य ग्रन्थो श्रीमदभगवत गीता और रामचरितमानस के सन्दर्भों का उपयोग करते हुये विषय को स्पष्ट करने का प्रयत्न रहा है ।
          विभिन्न सार्वजनिक बौद्धिक आयोजनों में मेरे द्वारा दिये गये वक्तव्यों से प्रभावित मेरे अनेक मित्रो का आग्रह था कि इन विचारो को प्रकाशित कराया जाय जिससे जिज्ञाशु जनो की जिज्ञासा का समाधान और विचार चिन्तन का वैयक्तिक और सामाजिक लाभ मिल सके । प्रस्तुत पुस्तक इसी विचार की परिणति है । विचाराभिव्यक्ति के इस प्रथम पुष्प के खिलने में मेरे गुरुजनो और आत्मीय शुभचिंतको की प्रेरणा के योगदान के प्रति मैं हृदय से प्रणत हूं और उन सभी के कल्याण की मंगलकामना करता हूँ । आशा है कि पाठकगण इस वैचारिक गवेषणा से अवश्य लाभान्वित होंगे ।

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